क्या आप जानते हैं कि एक हिंदू ब्राह्मण ने मुगल बादशाह शाहजहां को इतना प्रभावित किया कि वह उन्हें ‘फ़ारसी जानने वाला हिंदू’ कहते थे? चंद्रभान ‘ब्राह्मण’ की अनोखी कहानी जो ईरान तक पहुंची – जानिए कैसे
: असग़र वजाहत


एक जमाने में फारसी का वही महत्व था जो आज अंग्रेजी का है।फारसी प्रशासन और उच्च वर्ग की भाषा हुआ करती थी। हमारे देश में भी बहुत से कवि फारसी में कविता करते थे। लेकिन उनमें से अधिकतर की फारसी कविता को ईरान में महत्व नहीं दिया जाता।
कई पहला तो यही कि फ़ारसी यहां कभी जीवंत भाषा नहीं रही। पूरी तरह से किताबी भाषा थी। किताबी भाषा ज्ञान के कारण अधिकतर कवि पुराने ढंग की रूढ़िवादी कविता करते थे जिसका कोई महत्व नहीं था। लेकिन हिंदुस्तान के एक फ़ारसी कवि चंद्रभान ‘ब्राह्मण’ (1574-1662) को ईरान में भी मान्यता दी जाती है ।
चंद्रभान ‘ब्राह्मण’ के पिता के पिता का नाम धर्मदास था जो सरकारी अधिकारी थे। हिंदी और संस्कृत के अलावा चंद्रभान फारसी के प्रतिभाशाली विद्वान थे। उन्होंने अब्दुल हकीम सियालकोटी, जफ़र खान और मीर अब्दुल करीम के दिशा निर्देशन में फारसी साहित्य पढ़ा था। उन्होंने लाहौर के गवर्नर मुल्ला शकूर अल्लाह अफ़ज़ल खान से फ़ारसी ख़त्ताती( लेखन कला) सीखी थी।

ब्राह्मण में अपने समय के कुछ बहुत महत्वपूर्ण लोगों जैसे लाहौर में शहीद फौजियों के कमांडर आसिफ खान और उच्च पदों पर आसीन इस्लाम खान,मोअज़्ज़म खान, इनायत खान के सचिव के रूप में काम किया था। उन्होंने वजीर उल मुल्क अफजल खान के विश्वसनीय सचिव के रूप में भी बढ़ बड़ी जिम्मेदारियां निभाई थी। इन संपर्कों के कारण भाषा फारसी भाषा साहित्य और सूफी और संत दर्शन के प्रति उनका लगाओ बढ़ गया था।
अफ़ज़ल खान की मृत्यु के बाद उनके भतीजे अकील खान ने ब्राह्मण को सम्राट शाहजहां के दरबार में पेश किया था। शाहजहां ब्राह्मण के फ़ारसी ज्ञान और उसकी लेखन कला से इतना प्रभावित हो गया था कि सम्राट उनका उल्लेख ‘फ़ारसी जाने वाले हिंदू’ कह कर किया करता था।
सम्राट ने ब्राह्मण अपना सचिव भी नियुक्त किया था और उन पर शाही डायरी तथा दरबार की कार्रवाई दर्ज करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी।शाहजहाँ की मृत्यु के बाद दारा शिकोह ने ब्राह्मण को अपना सचिव बना लिया था। ‘ब्राह्मण’ ने दारा शिकोह के संस्कृत से फारसी अनुवाद ‘प्रोजेक्ट’ में भी काम किया था . ब्राह्मण का एक फारसी शेर बहुत अर्थपूर्ण है जो युगीन सहिष्णुता का परिचय भी देता है –
बेबिन करामते बुतखान–ए–मरा ऐ शैख़
के चूं खराब शुवद खान–ए–ख़ुदा गर्दद
ऐ शैख़ मंदिरों की करामात (चमत्कार) देखो
ये जब खराब (तोड़ दिए जाते हैं ) हो जाते हैं तो ख़ुदा का घर (मस्जिद) बन जाते हैं
असगर वजाहत – (जन्म 1946, अलीगढ़), हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक, नाटककार और व्यंग्यकार हैं। उनका नाटक “जिन लाहौर नहीं देख्या ओ जम्मैया नहीं” हिन्दी रंगमंच की कालजयी रचना मानी जाती है, जबकि “गोडसे@गांधी.कॉम” और अन्य नाटकों ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई। साहित्य और रंगमंच दोनों में उनके योगदान ने उन्हें समकालीन हिन्दी का महत्वपूर्ण रचनाकार बनाया है। प्रस्तुत विचार व्यक्तिगत हैं।